एक वंश जिसने मेवाड़ राज्य के वृक्ष को अपने प्राणों से सींचा

बड़ी सादड़ी के झाला
एक वंश जिसने मेवाड़ राज्य के वृक्ष को अपने प्राणों से सींचा

मध्यकालीन भारतीय इतिहास में मेवाड़ राज्य को हिंदुस्तान में सबसे सम्मानजनक स्थान प्राप्त था। इसे हिंदुआ सूरज का दर्जा दिया गया। मेवाड़ के सूर्यवंशी राजाओ का बड़ा गौरवशाली इतिहास रहा है, लेकिन मेवाड़ी गौरव के पीछे उसके राष्ट्रभक्त सरदारों, राव-उमरावों, ठिकानेदार योद्धाओं का प्रमुख योगदान रहा है। मेवाड़ी आन बान शान के पीछे उन बहादुरों का प्राणोत्सर्ग है, जिनकी पीढ़ी दर पीढ़ी मेवाड़ के लिए कुर्बान होती रही।

ऐसा ही मेवाड़ का एक ठिकाना है बड़ी सादड़ी जिसकी छह पीढ़ियों अज्जा, सिंहा, आसा,सुरताण, झाला मान, देदा ने निरंतर मेवाड़ के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।जिसमे राणा सांगा के बाबर के साथ हुवे खानवा के युद्ध मे राणा सांगा के घायल होने पर उनके हमशक्ल होने के कारण झाला अज्जा द्वारा उनका स्थान लेकर राणा सांगा को सुरक्षित युद्ध के मैदान से बाहर निकाल कर सैन्य मनोबल बनाये रखते हुवे वीरगति प्राप्त करने तथा हल्दीघाटी के युद्ध मे झाला मान द्वारा महाराणा प्रताप की जगह लेकर युद्ध करते हुवे वीर गति प्राप्त करने की घटनाये तो भारतीय इतिहास में अविस्मरणीय है।
अज्जा के पुत्र सिंहा महाराणा साँगा के पुत्र महाराणा विक्रमादित्य के समय गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के चित्तौड़गढ़ पर किये गए दूसरे आक्रमण के दौरान दुर्ग के हनुमान पोल पर लड़ते हुवे वीरगति को प्राप्त हुवे। सिंहा के पुत्र आसा महाराणा उदयसिंह की बनवीर के साथ चित्तौड़गढ़ में हुई लड़ाई में काम आये। आसा के पुत्र सुरताण ने महाराणा उदयसिंह के समय मुगल सम्राट अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ पर किये गए आक्रमण के समय दुर्ग के सूरजपोल दरवाजे के पास वीरगति प्राप्त की। सुरताण के पुत्र बिदा (झाला मान) थे जिन्होंने हल्दीघाटी युद्ध मे वीरगति प्राप्त की। देदा ने महाराणा अमरसिंह के समय मुगल सम्राट  जहांगीर के साथ राणपुर की लड़ाई में वीरगति प्राप्त की।
पीढ़ी दर पीढ़ी मेवाड़ी राज्य के लिये आत्म बलिदान करने के कारण बड़ी सादड़ी के झालाओ को राजराणा की उपाधि प्रदान की गई तथा उन्हें  प्रथम श्रेणी के ठिकानों में अत्यंत सम्मानजनक प्रथम स्थान प्राप्त था। उन्हें दरबार मे महाराणा के दायीं ओर महाराणा के बराबर बैठक प्राप्त थी। उन्हें महाराणा के बराबर लवाजमा रखने और उसको लेकर सवारी निकालने  और उसे उदयपुर के महल के त्रिपोलिया दरवाजे तक लाने का अधिकार प्राप्त था।
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